*विचलित मन की गाथा*
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October 13, 2018
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*मन की थकान जो उतार दे,*
*वो अवकाश चाहिए..*
*इस भागती हुइ जिंदगी में,*
*फुरसत की कुछ सांस भी चाहिए ।*
*कभी तो किसी दिल को भी,*
*पढने का वक्त मीले ….*
*इन लगे हुए मुखौटों से कुछ पल*
*संन्यास चाहिए ।*
*अब बहुत मन भर गया*
*बड़प्पन और मान से,*
*है बहुत तृप्त अहम*
*झूठी आन बान शान से..*
*इसको भी कुछ दिन का*
*उपवास चाहिए।*
*बन जाऊं जो तितली या परिंदा कोई*
*वो आभ और आभास चाहिए..*
*मन की थकान जो उतार दे*
*वो अवकाश चाहिए*
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